मिस्टर ब्लैक:—ए डार्क सुपरहीरो [6]
एक नया अध्याय
डेविल के जाने के कुछ समय बाद अचानक ही हवा में स्याह ऊर्जा प्रकट होने लगी और वह ऊर्जा धीरे धीरे एक बालक का रूप धारण करने लगी। यह शिव और सौंदर्या का वही बच्चा था जिसे डेविल ने अपनी स्याह ऊर्जा से जलाकर भस्म कर दिया था लेकिन डेविल ये नही जानता था की वह बच्चा खुद शुद्ध स्याह ऊर्जा का बना हुआ था। बच्चे का मानव शरीर स्याह अग्नि के प्रभाव में आकर जल गया था लेकिन उसके पास एक ऊर्जा कवच था जोकि अभेद था।
वह बच्चा अब पहले जैसा दिखने लगा था। अब तक सबकुछ सामान्य था लेकिन तभी अचानक झाड़ियों से सरसराहट की आवाजे आने लगी। सड़क के पास खड़ी आदमकद झाड़ियों में एक जोड़ी पीली खूंखार आंखे लालटेन की मानिंद चमक रही थी। तभी झाड़ियों से एक दैत्याकार सांप रेंगते हुए निकलकर बाहर आया।
काले रंग का वह सांप तकरीबन बीस फूट लम्बा था। उसके नुकीले दांत अंधेरे में बेहद डरावने ढंग से चमक रहे थे। उस सांप के फुफकारने की आवाज उस निर्जन स्थान पर गूंज रही थी।
वह सांप रेंगता हुआ उस बच्चे के पास जाने लगा। जैसे ही वह सांप उस बच्चे के नजदीक पहुंचा उसने अपना मानव रूप ग्रहण कर लिया। वह एक बाइस वर्ष का हट्टा कट्टा दिखने वाला युवक था जिसके बाल भूरे और बिखरे हुए थे।
नीली आंखों वाले उस युवक ने उस बच्चे को बड़े प्यार से अपनी गोद में उठा लिया और फिर वह शिव के निर्जीव शरीर के पास जा पहुंचा। शिव के शरीर को देखकर उसकी आंखे नम हो गई।
"मुझे माफ कर दो मेरे दोस्त। मुझे आने में देर हो गई।"" उस शख्स की आवाज में दुख साफ झलक रहा था।
"लेकिन तुम चिंता मत करो मेरे दोस्त। मैं तुम्हारे और सौंदर्या के बच्चे को कुछ नहीं होने दूंगा।"" उस शख्स ने अपनी आंखों से आंसू पोंछते हुए कहा।
इसके बाद उसने शिव और सौंदर्या के निर्जीव शरीर को वहीं पास ही में दफना दिया। उस शख्स की आंखों में प्रतिशोध की भावना साफ झलक रही थी। वह उस बच्चे को लेकर वहां से चला गया। थोड़ी देर बाद वह एक घर के सामने रुका। वह एक अनाथालय था। उस युवक ने बच्चे के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरा। उसकी आंखों में एक बार फिर से आंसू निकलने लगे।
"माफ करना मेरे बच्चे लेकिन इस वक्त तुम्हारा यहां रहना ज्यादा महफूज होगा। ये तुम्हारी दुनियां नही है लेकिन वक्त आने पर तुम्हे अपनी दुनिया के बारे में सब कुछ पता चल जाएगा।"" इतना कहकर उस शख्स ने उस बच्चे को अनाथाश्रम की सीढ़ियों पर रख दिया।
"ये सब क्या है शैडो?"" इन सब दृश्यों को देख रहे वीर ने शैडो से पूछा।
"तुम्हे सब कुछ जल्द ही पता चल जायेगा वीर लेकिन इस वक्त तुम इतना समझ लो की ये शख्स तुम्हारे पिता वनराज हैं।"" शैडो ने अनाथाश्रम के बाहर खड़े उस शख्स की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
"और ये बच्चा कौन है?"" वीर ने शैडो पर एक और प्रश्न दागा।
"इसका अंदाजा तुमने लगा लिया होगा लेकिन अगर तुम्हे पता नही चला तो कुछ समय बाद अपने आप पता चल जायेगा।"" इतना कहकर शैडो आगे की स्मृति देखने लगा।
वह शख्स जिसका नाम वनराज था, उस बच्चे को अनाथाश्रम की सीढ़ियों पर रखकर अपने सर्प रूप में वहां से चला गया।अगले दिन वह बच्चा उस अनाथाश्रम में काम करने वाले लोगो को मिल गया। उन लोगो ने उसे भी बाकी अनाथ बच्चों की तरह अपने आश्रम में रख लिया। उस बच्चे की परवरिश भी बाकी बच्चो की तरह होने लगी लेकिन वह बच्चा बाकी बच्चो से अलग था। जहां बाकी बच्चे अपने हम उम्र बच्चो के साथ खेलते थे वही वह गुमसुम होकर एक कोने में बैठा रहता था। वह किसी से बात नहीं करता था इसलिए सब उसे गूंगा समझते थे। अनाथाश्रम वालो ने उसे एक नाम भी दिया था। उसका नाम रुद्राक्ष था लेकिन सब उसे रूद्र कहकर बुलाते थे।
रूद्र अब चार साल का हो गया था। उसके बाल स्याह काले रंग के थे और उसकी काली कंटीली आंखे देखने में बेहद ही खूबसूरत लगती थी।
रूद्र अनाथाश्रम के पास बगीचे में एक सीमेंट की बेंच के ऊपर बैठा हुआ था कि तभी किसी ने उसे पीछे से बड़ी जोर से धक्का दिया। धक्का ज्यादा तेज नही था लेकिन फूल सा हल्का होने के कारण रूद्र पास ही मौजूद लोहे के झूले से टकराने से बाल बाल बचा। रूद्र ने अपनी गर्दन घुमाकर पीछे की ओर देखा तो वहां अनाथाश्रम के ही कुछ बदमाश बच्चे खड़े थे जोकि अनाथाश्रम के सभी बच्चो को बहुत ज्यादा परेशान करते थे, खासकर रूद्र को जब भी वह अकेला होता था। रूद्र उन बच्चो को गुस्से से घूरने लगा। उसका चेहरा गुस्से की वजह से लाल पड़ गया था।
"क्या बे! ऐसे किसको घूर रहा है। आंखे नीची कर वरना इनको निकालकर हम इनसे कंचे खेलेंगे।"" उनमें से एक सत्रह वर्षीय लड़के ने रूद्र को धमकी देते हुए कहा।
रूद्र ने अपने बाएं हाथ से झूले का लोहे का पाइप बड़ी मजबूती से पकड़ा हुआ था। जैसे जैसे उसका गुस्सा बढ़ता जा रहा था, पाइप पर उसकी पकड़ और मजबूत होती जा रही थी। तभी वहां अनाथाश्रम का एक व्यक्ति आ गया जोकि उन बच्चो को पढ़ाता था।
"क्या हो रहा है यहां।"" उस व्यक्ति ने आते ही कड़क आवाज में उन लड़कों से पूछा जोकि रूद्र को परेशान कर रहे थे। वह एक पहलवान जिस्म का बत्तीस वर्षीय युवक था जोकि दिखने से ही काफी गंभीर प्रतीत हो रहा था।
"कुछ नही सर हम तो बस इसके साथ खेल रहे थे।"" इतना कहकर वे लड़के वहां से भीगी बिल्ली बनकर खिसक गए।
वह व्यक्ति रूद्र के पास पहुंचा और उसकी उठने में मदद की।
"तुम ठीक तो हो बच्चे।"" उस व्यक्ति ने रूद्र के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा। बदले में रूद्र बस धीरे से मुस्कुरा दिया। इसके बाद जब रूद्र वहां से चला गया तो उस व्यक्ति का ध्यान झूले के लोहे के पाइप पर गया जोकि बहुत बुरी तरह से पिचका हुआ था। उस व्यक्ति को काफी आश्चर्य हुआ। आखिर एक फूल से भी नाजुक बच्चा एक लोहे के पाइप का इतना बुरा हाल कैसे कर सकता था।
रूद्र इस समय अपने कमरे में टूटी हुई चार पाई पर लेटा हुआ था। उसकी आंखों में एक अजीब सा खालीपन था। वह अपने कमरे में मौजूद इकलौती खिड़की से बाहर झांक रहा था। खिड़की से बाहर का दृश्य काफी सुंदर था। रूद्र उस दृश्य को देखकर देखता ही रह गया कि तभी उसकी नज़र एक विशालकाय सांप पर पड़ी। काले रंग का वह सांप बेहद खौफनाक था। उसकी पीली आंखे किसी को भी डरा सकती थी। जैसे ही रूद्र सांप को अच्छे से देखने के लिए खिड़की के पास पहुंचा, वह सांप वहां से ओझल हो गया।
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To be continued.............